दुर्योधन ने अपनी भाभी का चीरहरण फिल्म देखकर नहीं किया था. रावण फिल्म के प्रभाव से प्रभावित होकर मातेश्वरी जगत जननी मां सीता को उठाकर नहीं ले गये थे, साधु बनकर ले गये थे. दुष्कृत्य या तमाम घटनाएं-दुर्घटनाएं पहले भी होती रहीं. फिल्में ही समाज को बना रही हैं और फिल्में ही समाज बिगाड़ रही हैं. इतनी सारी फिल्मों में हीरोचित कृत्य को क्यों समाज के लोग स्वीकार नहीं करते और विलेन-खलनायक के कृत्य को क्यों स्वीकार कर रहे हैं?
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