हिंदू धर्म में सूर्य देवता से जुड़े कई त्योहार मनाने की परंपरा है। उन्हीं में से एक मकर संक्राति भी है। जब भगवान सूर्य उत्तरायण होकर मकर राशि में आते हैं तो इसे मकर संक्रांति के रूप में देशभर में मनाया जाता है। इस पर्व पर सूर्य पूजा के साथ ही पवित्र नदियों में स्नान और श्रद्धा अनुसार जरूरतमंद लोगों को दान करने की प्राचीन परंपरा है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान कई गुना होकर वापस लौटता है।
देवताओं के दिन की शुरुआत
इस संबंध में मान्यता है कि सूर्य के उत्तरायण होने से देवताओं के दिन की शुरुआत हो जाती है। इस वजह से इस पर्व का खास महत्व है। खरमास के कारण 16 दिसंबर से बंद चल रहे मांगलिक काम मकर संक्रांति के बाद शुरू हो जाएंगे। मकर संक्रांति के बाद ही ग्रह प्रवेश, शादी-विवाह एवं नए व्यापार का शुभ मुहूर्त है।
तिल से बनी चीजों का करते हैं दान
मान्यता है कि सूर्य के उत्तरायण होने से मनुष्य की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। मकर संक्रांति पर्व पर तिल और गुड़ से बनी चीजों का दान करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के मुताबिक इस दिन तिल का दान करने से जाने-अनजाने हुए पाप खत्म तो खत्म होते ही हैं साथ ही तिल दान से कई गुना पुण्य मिलता है। जिससे समृद्धि और सौभाग्य बढ़ता है।
भीष्म पितामह ने चुना था उत्तरायण
मान्यता है कि मकर संक्रांति से सूर्य की किरणें सेहत ओर शांति बढ़ाती हैं। पौराणिक कथा के मुताबिक महाभारत काल में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपनी इच्छा से शरीर का परित्याग किया। ऐसी भी मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ ऋषि के पीछे-पीछे चलकर कपिल ऋषि के आश्रम में आई थीं।
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